Bhagwat Geeta 17 Adhayay

 Bhagwat Geeta 17 Adhayay

श्री भगवान जी बोले - मंडलीक नाम देश में दुश्सान नाम का राजा था| एक राजा किसी और देश का था , जिनहोने आपस में शर्त बाँधी , हाथी लड़ाए और कहा जिसका हाथी जीते सो यह अमुक धन लेवे| तब दूसरे राजा का हाथी जीता दुशासन का हाथी हारा| कुछ दिन पीछे हाथी मर गया तो राजा को बड़ी चिंता हुई| एक धन गया दूसरे हाथी मरा , तीसरे लोगों की हँसी हुई | इससे निंदा हुई। इसी चिंता से राजा मर गया, यमदूत पकड़ कर धर्मराज के पास ले गए धर्मराज ने हुकुम दिया यह हाथी के मोह में मरा है। इसको हाथी की योनि दो। हे लक्ष्मी! राजा दुशासन संगलदीप में जाकर हाथी हुआ और वहां उस राजा के बहुत हाथी थे। तिनमे आया, उसे पिछले जन्म की खबर थी| मन में बारम्बार यही पछतावे क़ि मैं पिछले जन्म राजा था| अब हाथी हुआ हूँ| बहुत रुदन करे खावे- पीवे कुछ नहीं इतने में एक साधु आया जिसने राजा को एक श्लोक सुनाया| राजा बड़ा प्रसन् हुआ और बोला, हे संतजी - कुछ मांगे उसने कहा और मेरे पास सब कुछ है, एक हाथी नहीं है, राजा ने सुनकर वही हाथी  दिया।  ब्राह्मण अपने घर ले आया, दाना रात को दिया| वह खावे नहीं पानी भी नहीं पिए, रुदन करे , मन में विचार कर कि कोई ऐसा होवे जो मुझे इस योनि से छुडावे , तब उस साधु ने महावत को बुलाया और पूछा कि इस हाथी को क्या दुःख है? खाता-पीता कुछ नहीं।  महावत ने देखकर कहा इसको कुछ रोग नहीं है।  तब साधु ने राजा से कहा हाथी खाता-पीता कुछ नहीं , बस रुदन करता है, यह सुनकर राजा आप देखने को आया।  राजा ने बड़े -२ वैध बुलाये और महावत को भी हाथी दिखाया उन्होंने देखकर कहा , राजा जी ! इसको कोई मानसिक दुःख नहीं है| देह को कोई दुःख नहीं| तब राजा ने कहा - हाथी तू ही बोल तुझे क्या दुःख है| परमेश्वर की शक्ति से मनुष्यो की भाषा में हाथी ने कहा, राजन तू बड़ा धर्मज्ञ है।  यह ब्राह्मण भी बुद्धिमान है, इसके हक का अन्न खावे जो बड़ा धर्मात्मा हो।  मुझको क्यों मिले, तब साधु ने कहा, हे राजा! अपना हाथी फेरले राजा ने कहा, दान किया मैं नहीं फेरता| यह हाथी मरे या जीवे तब हाथी ने कहा- हे संतजी! तू मत कल्प।  तेरे घर में कोई गीता की पाठी हो तो मुझे सत्रहवें अध्याय का पाठ सुनाओ।  तब उस साधु ने ऐसा ही किया- हे लक्ष्मी! सत्रहवें अध्याय का पाठ सुनते ही तत्काल हाथी की देह छूटी।  आकाश से विमान आये। देव देहि पाकर विमानों पर चढ़ के राजा के सामान आ खड़ा हुआ।  राजा की स्तुति करी| राजन तू धन्य है।  तेरी कृपा से मैं इस अधम देह से छूटा हूँ, राजा को अपनी पिछली कहानी सुनाई | हे राजन- मैं पिछले जन्म में राजा था, हाथी मैंने लड़ाए थे।  मेरा हाथी हार गया था, मैं उसी गम में मर गया।  धर्मराज की आज्ञा से मैंने हाथी जन्म पाया।  मैंने प्रार्थना की , और पूछा मेरी गति कब होवेगी तो धर्मराज ने कहा , गीता जी के सत्रहवें अध्याय का पाठ सुनने से तेरी मुक्ति होवेगी।  सो तेरी और संतजी की कृपा हुई, मैं बैकुण्ड को जाता हूँ।  देवदेहि पाकर बैकुण्ड को गया। राजा अपने घर वापिस आया| 

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