Bhagwat Geeta 15 Adhayay
Bhagwat Geeta 15 Adhayay
भावार्थ :-श्रीकृष्ण ने अर्जुन को 5000 साल पूर्व जो गीता के उपदेश दिए थे, उनका पालन करके आज तक कितने ही प्रसिद्ध व्यक्तियों ने अपने जीवन को सार्थक, सफल बनाया है। गीता उपदेश मानव जाति के लिए सूर्य के समान है जो अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाता है। मानवजाति के लिए गीता के उपदेशों की उपयोगिता और सार्थकता सदा बनी रहेगी।
श्री नारायण जी बोले- हे लक्ष्मी! अब पन्द्रहवां अध्याय का माहात्म्य सुन| उत्तर देश में एक नृसिंह नाम राजा था और सुभग नाम मंत्री था| राजा को मंत्री पर बड़ा भरोसा था। मंत्री के मन में कपट थ। मंत्री चाहता था ,वो राजा को मारकर राज्य मैं ही करूँगा। इसी भांति कुछ काल व्यतीत हुआ। एक दिन राजा नौकर चकारों सहित सो रहा था, तब मंत्री राजा को सारे नौकरों समते मारकर राज्य करने लगा| राज्य करते बहुत काल व्यतीत हुआ| एक दिन वह भी मर गया यमराज के पास दूत बांधकर ले गए| धर्मराज ने कहा, हे यमदूतों ! यह बड़ा पापी है। इनको घोर नर्क में डालो| हे लक्ष्मी ! इसी प्रकार वह पापी की नर्क भोगता -२ धर्मराज की आज्ञा से घोड़े की योनि में आया| संगलदीप में जाकर धोड़ा बना | बड़े घोड़ों के सौदागर उसे मोल ले तथा और भी घोड़े खरीद कर अपने देश को चला, चलते-२ अपने देश में आया। तब वहां के राजा ने सुना, कि आमुक सौदागर बहुत से घोड़े ले आया है| तब राजा ने उसे बुलाया, देखकर घोड़े खरीदे। उस घोड़े को भी ख़रीदा जब उस घोड़े को फेरा , तब राजा को देखकर कहा, इसने सिर फेरा तब राजा ने देखकर कहा, यह क्या बात है, घोड़े ने सिर फेरा है| तब राजा ने पंडित बुलाकर पूछा की इस घोड़े ने हमको देखकर शिर फेरा है| इस का क्या कारण है? पंडित ने कहा, हे राजन! इस घोड़े ने तुमको सिर नवाया है राजा ने कहा यह बात नहीं। कई दिन पीछे राजा शिकार खेलने को उसी घोड़े पर सवारी करके गया| वह धोड़ा जल्दी चलता था। राजा शिकार खेलता -२ बहुत दूर चला गय। उस दिन हाथों हाथ राजा ने शिकार पकड़ के मारे। राजा बहुत प्रसन्न हुआ , दोपहर हो गयी। राजा को तृषा लगी, वन में एक अतीत देखा। कुटिया में बैठा था। राजा उतरा धोड़ा वृक्ष से बांध कर कुटिया में गया, देखा तो साधु अपने पुत्र को भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय का पाठ सिखा रखा है। वृक्ष के पते पर श्लोक लिख दिया है। बालक को कहा , खेलते फिरो और इसको कंठ भी करो, जिस वृक्ष से राजा ने घोड़ा बांधा था, उसी वृक्ष के पत्ते पर श्री गीता जी का श्लोक लिखा थ। वह बालक पत्ता लेकर खेले भी पढ़े भी| उस पत्ते को घोड़े ने देखा तत्काल उसकी देह छूटी। देवदेहि पाई। स्वर्ग से विमान आये। उस पर बैठ कर बैकुंठ को चला| इतने में राजा पानी पीकर बाहर आया देखे तो धोड़ा मरा पड़ा है| राजा चिंतावान होकर बोला , यह धोड़ा किसने मारा| इसे क्या हुआ ? इतने में वह बोला , हे राजन! तेरे घोड़े का चैतन्य मैं हूँ, मैंने अब देवदेहि पाई है। बैकुंठ को चला हूँ| राजा ने पूछा , तुमने कौन पुण्य किया है। हे राजन ! यह बात ऋषिश्वर से पूछो! राजा से मुनिवर ने कहा , है राजन ! गीता का श्लोक लिखा हुआ पत्ता इसके आगे पड़ा है, घोड़े ने अक्षर देखे है, इस कारण घोड़े की गति हुई| राजा ने पूछा धोड़ा कौन था और घोड़े को शिर फिरने की बात भी राजा ने कही| मुनीश्वर ने कहा , राजन पिछले जन्म में तू राजा था। यह तेरा मंत्री था, यह तुमको मारकर राज्य करता था, तू फिर राजा हुआ| यह मरकर धर्मराज के पास गया। धर्मराज ने इसे नर्क में जानेको कहा| बड़े नर्क भोगता-२ घोड़े के जन्म में आया। संगलदीप आकर तेरे पास बिका। जब इसने शिर हिलाया , तब कहा था, हे राजन ! तू मुझे पहचानता नहीं परन्तु मैं तुझको पहचानता हूँ। यह चुप हो गया | राजा ने विसिमित होकर दण्डवत की , पीछे लोग आये मिले सवार हो अपने घर अपने पुत्र को राज्य देकर आप वन को गया| तप श्री गीताजी का पन्द्रहवां अध्याय का पाठ किया करे। जिसके प्रसाद से राजा भी परम गति का अधिकार हुआ| श्री नारायण जी बोले, हे लक्ष्मी! भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय का यह माहात्म्य मैंने तुमको सुनाया है|
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