Ganesh Ji ko Modak(Laddo) Q Acche Lagte hai ?
Ganesh Ji ko Modak(Laddo) Q Acche Lagte hai?
दिवाली की रात को श्री गणेश जी - श्री महा सरस्वती जी , श्री महा लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस रात के स्थिर लगन में श्री लक्ष्मी जी और श्री गणेश जी की पूजा का विधान है। पूजा में कमल गट्टा, गन्ना , सिंघारा , कमल के फूल अधि का होना सारे विघन दूर करते है।
श्री गणेश साक्षात् ब्राह्म सरूप है। जैसे श्री ॐ के बिना सभी मंत्र अधूरे है वैसे ही गणेश उसतत के सारे देवी देवताओं की पूजा अधूरी है। गणेश जी शुभ कामों और देवों में सभी से पहले पूजा होने के कारन उनको खुश किये बिना किसीकी भलाई संभव नहीं है। गणेश जी की पूजा सभी रुकावटों , मुशिकलों को दूर करने में और सद्बुद्धि , रिद्धि सीधी और सच का रास्ता अपनाने की प्रेरणा देता है।
गणेश जी के नाम का अर्थ-:
गणेश जी के नाम का अर्थ बहुत महत्वपूर्ण है। गणेश जी का अर्थ है "ग" मन के द्वार बुद्धि के दवार ग्रहण करन योग्य वर्णन करते योग सम्पूर्ण जगत को स्पष्ट करता है। "ण" मन बुद्धि और वाणी को पूरे ब्रहम विद्या सरूप परमात्मा को सप्षट करता है और जो इन दोनों में " इश " अथवा सवामी गणेश जी को कहा गया है।
इसी कारण सभी मंगल कामें और देव प्रतिष्ठा के शुरू में श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। भगवान शिव जी ने गणेश जी को भिघनाश्क होने का वर दिया है। कलयुग में चंडी और विघनाशक को जल्दी ही फल देने की वजह से फलदाता कहा गया है।
उनको मोदक (लाडू) क्यों अच्छे लगते है ?
गणेश जी को मोदक और लड्डू की पसंद के पीछे एक कहानी है। एक बार की बात है जब भगवान गणेश जी भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी से युद्ध कर रहे थे तब लड़ाई के दौरान गणेश जी का एक दांत टूट गया और उन्हें खाने में दिक्कत होने लगा। इसके बाद उनके लिए स्वादिष्ट लड्डूू और मोदक तैयार किए गए, जो उनके मुंह में जाते ही घुल गए। विघ्नहार्ता गणपति को यह बहुत पसंद आया और मोदक उनका प्रिय भोजन बन गया। मोदक की गोलाई जीरो की प्रतिक है। ज़ीरो से ही सभी जनम लेते है और जीरो से ही सभ ख़तम हो जाता है।
हमारी सनातन कर्म कंडमाई व्यवस्था में गणेश और लक्ष्मी दोनों का ही विशेष महत्व है। हर कर्मकांड में गणेश जी की पूजा का बहुत महत्व माना जाता है। इसे सबसे पहले पूजा जाने वाला कहा जाता है। हिंदू सनातन प्रणाली में गणपति की पूजा और गणपति की पूजा के बिना कोई भी पूजा और अनुष्ठान शुरू नहीं किया जाता है।
गणपति को ज्ञान का देवता कहा जाता है और लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। दीपावली के पावन अवसर पर लक्ष्मी जी के साथ-साथ गणपति की आराधना भी एक विशेष विधान है। हमारे ऋषि-मुनियों का मानना है कि मानव जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए सर्वोत्तम बौद्धिक संपदा अर्थात ज्ञान और भौतिक संपदा अर्थात धन नितांत आवश्यक है। इन दोनों के बिना मानव जीवन अधूरा है।
प्रथम पूज्य गणपति और माता लक्ष्मी जी की आराधना से बुद्धि और अपार धन की प्राप्ति होती है - ऐश्वर्य। मनुष्य का जीवन केवल अपार धन से आनंदित नहीं हो सकता, उसे सर्वोत्तम ज्ञान की आवश्यकता होती है , जो मनुष्य को हमेशा अध्यात्म के मार्ग पर ले जाए।
पुराणों के अनुसार गणेश जी को महालक्ष्मी का दत्तक पुत्र माना गया है, इसलिए लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ गणपति की पूजा भी आवश्यक मानी गई है। गणपति की पूजा के बिना मां लक्ष्मी की कृपा नहीं मिलती है। इसीलिए हमारी पारंपरिक अनुष्ठान प्रणाली में हमें विशेष रूप से भगवान गणेश की स्तुति में गणेश की पूजा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
गणपति उस्तत में भगवान गणेश जी को मोदक प्रिया कहा गया है। उन्हें मन का चिंताजनक अर्थ प्रदान करने के लिए भी कहा जाता है।
गणेश जी की पूजा फलदायी मानी जाती है। कनकधारा उस्तात में मां लक्ष्मी जी की आराधना के मंत्र हैं। इसमें कहा गया है कि लक्ष्मी जी की आराधना करने से साधक को समस्त प्रयोजन, संपत्ति का विस्तार हो जाता है। जो भक्त भगवान विष्णु की हिरदा देवी लक्ष्मी के मन, वचन, वाणी और शरीर का जप करता है, उसे अपार धन-ऐश्वर्य से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।कमल के समान नेत्रों वाली माता लक्ष्मी का पालन करने से समस्त इन्द्रियों को सुख मिलता है और समस्त तुच्छ आवेगों को हर लेती है, भक्त को सदा धर्म मार्ग की ओर ले जाती है।
ऋग्वेद के श्री सूक्त में भी माता लक्ष्मी को सुख, समृद्धि, सरलता और वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। इन सभी चीजों को प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य के लिए लक्ष्मी जी की पूजा करना आवश्यक है।ऋग्वेद में लक्ष्मी सूतक के मंत्रों के साथ, लक्ष्मी की औपचारिक पूजा और इन मंत्रों के माध्यम से अग्निहोत्री की पेशकश से मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
मनीषियों का कहना है कि जैसे एक माँ अपने बेटे को बहुत प्यार करती है और जो कोई भी उसके बेटे को खुश करता है, उसी तरह माँ हमेशा उसमे खुश रहती है,ठीक उसी तरह माँ लक्ष्मी के दत्तक पुत्र गणपति की औपचारिक पूजा से लक्ष्मी हमेशा खुश रहती है।
गणेश जी श्रेष्ठ बौद्धिक संपदा के प्रतीक हैं और माता लक्ष्मी जी भौतिक संपदा ऐश्वर्य की प्रतीक हैं। यदि हमारी बुद्धि में श्रेष्ठ दैवी प्रवृत्तियाँ समाहित हों तो हम अपने जीवन में धन का सदुपयोग करने में समर्थ हो सकते हैं।
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