Shree Shani Chalisa in Hindi Lyrics with video

 Shree Shani Chalisa


जय शनि देव महाराज… शनि देव जी की श्री शनि चालीसा हिंदी भाषा में आप सभी भक्तों के लिए लिखी गई है।
शनि देव की महानता का गुण गान करना अपने आप में ही एक सौभाग्य की बात है। हिंदू धर्म में शनि देव को दंडाधिकारी माना गया है। हिन्दू धर्म में शनि महाराज सबसे बड़े न्यायाधीश है।
सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में लोगों के बीच कई मिथ्या हैं। लेकिन मान्यता है कि भगवान शनिदेव जातकों के केवल उसके अच्छे और बुरे कर्मों का ही फल देते हैं।
शनि देव की पूजा अर्चना करने से जातक के जीवन की कठिनाइयां दूर होती है।
शिव पुराण में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने शनिदेव को “श्री शनि चालीसा” से प्रसन्न किया था। शनि चालीसा निम्न है। शनि साढ़ेसाती और शनि महादशा के दौरान ज्योतिषी श्री शनि चालीसा का पाठ करने की सलाह देते हैं।
शनि देव की महिमा जिस पर भी हो जाती है वो गरीब से अमिर बन जाते हैं कमजोर से ताकतवर बन जाते हैं।
महाराज शनि देव की कहानी भी है हम उसको भी लिखेंगे लेकिन अभी शनि चालीसा का पाठ कीजिये और अपने सभी दुःख दर्द को भगवान शनि के आगे रख दीजिये।
शनि भगवान की चालीसा पढ़ने मात्र से ही लोगों के जीवन में बदलाव आने लगते हैं लोग अपने जीवन में खुशियाँ बटोरने लगते हैं उन्हें किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती है।

                            ।।  दोहा।। 

जय गणेश गिरिजा सुवन , मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल।।
भावार्थ -: हे गिरिजा पुत्र गणेश ! आपकी जय हो !
आप मंगलकर्ता एवं कृपा करने वाले हैं।  हे नाथ ! दोनों के दुखों को दूर करके आप उन्हें प्रसन्ता प्रदान करें।

जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज।।

भावार्थ -: हे प्रभु शनिदेव ! आपकी जय हो ! आप मेरी विनती सुन कर कृपा कीजिये और लोगों की लज्जा की रक्षा कीजिये।

जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रितपाल।।
भावार्थ -: हे शनिदेव ! आपकी जय हो ! जय हो ! आप सदा भक्तों का पालन करते है। उनका सदैव धयान रखते है।

चारि भुजा , तनु शयाम विराजे।
माथे रतन मुकुट शवि शाजे।

भावार्थ -: आपकी चार भुजाएं हैं , शरीर पर शयमलता की शोभा है, मस्तक पर रत्त्नों से जड़ित मुकुट शोभायमान है।

परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।

भावार्थ -: आपका विशाल ललाट मन को हरने वाला है।  आपकी द्रिष्टि टेढ़ी और भोहों बिकराल हैं।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमको।
हिये माल मुक्तन मणि दमके।

भावार्थ -: आपके कानों में कुण्डल चमक रहे हैं तथा शाती पर मुक्तामणि की माला विराजमान है।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करें अरिहिं संहारा।।

भावार्थ -: आपके हाथों में गदा, त्रिशूल और कुठार विराजमान हैं। आप एक क्षण में शत्रुओं का संहार कर देती हैं।

पिंगल कृष्णे शाया नन्दन।
यम कोणस्थ रुदर दुःख भजन।।

भावार्थ -: कृष्ण रुपी शाया में उपस्थित होकर जब भी आप अपना रूदर रूप दिखाते हैं तब सभ दुखों का नाश कर देते हैं।

सूरी मनद शनी दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।

भावार्थ -: सौरी , मंद , शनि और सूर्यपुत्र आपके ये दस नाम हैं। इन नामों का जय सभी कामनाएं पूरी कर देता हैं।

जापर प्रभु प्रसन हवें जाहिं।
रुकुन राव करें क्षण माहीं।।

भावार्थ-: प्रभु ! आप जिस पर प्रसन हो जाते हैं उस दरिदर को भी एक क्षण में राजा बना देते हैं।

पर्वतहू तृण हुए निहारत।
तृणुह को पर्वत करे डारत।।

भावार्थ -: आपकी द्रिष्टि पड़ते ही पर्वत भी तिनके के समान हो जाता हैं और तिनके को आप पर्वत बना देते हैं।

राज मिलत वन रामहि दीन्हों।
कैकेई की मति हरि लीन्हो।।
भावार्थ -: जब भगवान राम का राजतिलक होने जा रहा था , उस समय आपने कैकयी की बुद्धि भृष्ट करके श्री राम को वन में भेज दिया।

वनहुं में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई।।

भावार्थ-: वन में भी आपने माया -मृग की रचना कर दी , जिससे माता जानकी का अपहरण  हो गया।

लखनिह शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा।।

भावार्थ -: लक्ष्मण को अपने शक्ति - प्रहार से आपने व्यथित कर दिया , जिससे राम - दल में हाहाकार मच गया।

रावण की गति मति बुराई।
रामचन्दर सों बैर बढ़ाई।।

भावार्थ -: रावण जैसे विद्वान् की आपने बुद्धि भ्रष्ट कर दी थी , जिससे वह विक्षित होकर भगवान श्री राम  से शत्रुता कर बैठा।

दियो कीट करि कंचन लंका।
बीज बजरंग बीर की डंका।।

भावार्थ-: सोने की लंका को आपने मिटटी में मिला दिया और वीर बजरंगवली का यश बढ़ाया।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गे हारा।।

भावार्थ -: राजा विक्रमादित्य पर आपका चरण पड़ा और दीवार पर टंगा मोर का चित्र रानी का हार निगल गया।

हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भावार्थ -: राजा विक्रमादित्य पर उस नौलखे हार की चोरी का आरोप लगा और उनके हाथ-पैर तुड़वा दिए गए।

भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलहिं घर कोल्हू चलवाओ।।

भावार्थ-: राजा को आपने अत्यंत निमन स्तर तक पहुंचा दिया। उन्हें तेली के घर में कोल्हू चलाना पड़ा।

विनय राग दीपक मुँह कीन्हों।
तब प्रसन प्रभ ह्वे सुख दीन्हो।।

भावार्थ -जब उन्होंने दीपक राग में आपकी प्रार्थना की , तब आपने प्रसन होकर उन्हें सुख प्रदान किया।

हरिस्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।

भावार्थ -: राजा हरिस्चन्द्र पर आपकी द्रिष्टि पड़ी और उनको अपनी पत्नी का विक्रय कर डोम के घर पानी भरना पड़ा।

तैसे नल पर दशा सिरानी।
भुंजी मीन कूद गई पानी।।

भावार्थ -: उसी प्रकार जब राजा नल पर आपकी दशा आई , तो भुनी हुई मछली भी पानी में कूद पड़ी।

श्री शंकरहि गवहों जब जाई।
पारवती को सती कराई।।

भावार्थ -: जब शंकर जी पर आपकी दशा आई , तो उनकी पत्नी को हवन-कुण्ड में जलकर भस्म होना पड़ा।

तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़े गयो गौरिसुत सीसा।।

भावार्थ -: अलप क्रोध वली द्रिष्टि से देखते ही गोरी - पुत्र का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।

पाण्डव पर भे दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी।।

भावार्थ -: पाण्डु -पुत्रों पर आपकी दशा होते ही उनकी पत्नी द्रोपदी नृवसब होते - होते बची।

कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो।।

भावार्थ -: कौरवों की बुद्धि का भी आपने हरण कर लिया था , जो विवेकशून्य होकर महाभारत जैसे युद्ध कर बैठे।

रवि कहूं मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला।। 

भावार्थ -: सूर्या जैसे शक्तिशाली देवता को आपने मुँह में डालकर आप तुरंत पाताल को चले गए।

शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।

भावार्थ -:जब सभी देवता मिलकर आपसे प्रार्थना करने लगे, तब आपने सूर्या को मुख से बहार निकाल दिया।

बाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्धव मृग स्वाना।।

भावार्थ -: यह सभी जानते हैं कि आपके पास सात प्रकार कि वाहन हैं - घोड़ा , हाथी , गधा , हिरन , कुत्ता आदि।

जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सौ फल ज्योतिष कहत पुकारी।।

भावार्थ -: सियार और शेर ! इन सभी वाहनों क़े फल ज्योतिषियों द्वारा अलग - अलग बताये गए हैं।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवें।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं।। 

भावार्थ -: हाथी क़े वाहन से घर में लक्ष्मी का आगमन होता हैं और घोड़े क़े वाहन से घर में अपार सुख - सम्पति आती हैं।

गर्धव हानि करे बहु काजा।
सिंह सिद्ध कर राज समाजा।।

भावार्थ -: गधे की सवारी से हानि होकर बहुत से कार्य विनष्ट को जाते हैं।  सिंह की सवारी से र।ज व् समांज में सिद्धि प्रापत होति हैं।

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारे।
मृग दे कष्ट प्राण संहारे।।

भावार्थ -: सियार क़े बाहन से बुद्धि का नाश होता हैं और मृग का बाहन कष्ट देकर प्राणों का संहार करता हैं।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।

भावार्थ -: जब स्वामी कुत्ते की सवारी पर आते हैं , तब चोरी आदि तो होती ही हैं , अतयन्त भय भी बना रहता हैं।

तैसहि चारि चरण यह नामा।
सवर्ण लौह चांदी अरु तामा।।

भावार्थ -: आपके चार चरणों क़े नामों को चार धातुओं - सोना , लोहा , चांदी और तांबे क़े नाम से जाना जाता हैं।

लौह चरण पर जब प्रभु आवें।
धन जन सम्पति नष्ट करावें।।

भावार्थ -: जब स्वामी लोहे क़े चरण पर आते हैं , तब धन, जन और सम्पति सब कुछ नष्ट करा देते है।

समता ताम्र रजत शुभकारी।
सवर्ण सर्व सुख मंगल कारी।।

भावार्थ -: तांबे और चांदी क़े दोनों चरण शुभ दायक हैं।  सोने का चरण सभी सुख प्रदान करने वाला व् मंगलकारी होता हैं।

जो यह शनि चरित नित गावै।
कबहुँ न दशा निकृष्ट सतावे।।

भावार्थ -: जो व्यक्ति इस शनि - चरित का नित्य गान करता हैं , उसे कभी निकृष्ट दशा नहीं सताती।

अद्धभुत नाथ दिखावें लीला।
करें शत्रु क़े नशि बलि ढीला।।

भावार्थ -: हे सवामी ! जब आप अपनी अद्भुत लीलायों दिखाते हैं तो शत्रुओं की नसे तथा बल क्षीण कर देते हैं।

जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि गृह शांति कराई।।

भावार्थ -: जो व्यक्ति सुयोग्य पंडित बुलाकर विधिवत शनि गृह की शांति करवाता हैं।

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान हैं बहु सुख पावत।।

भावार्थ -: शनिवार क़े दिन पीपल वृक्ष को जल चढ़ाता हैं और वहां दीपक जलाता हैं , तो उसे अत्यंत सुख मिलता हैं।

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

भावार्थ -: प्रभु क़े सेवक रामसुंदर जी कहते हैं कि शनि की पूजा करने से सुखों की प्राप्ति होती हैं।

पाठ शनिचर देव को, कीन्हो भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन , हो भवसागर पार।।

भावार्थ -: भक्त ने इस शनि को तैयार किया हैं। जो इसका चालीस दिनों तक पाठ करता हैं वह भवसागर से पार हो जाता हैं। 



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